आजकल बच्चे, बड़ी भूलने की बीमारी


 *आजकल बच्चे, बड़ी भूलने की बीमारी*

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 बच्चे इन दिनों एक बड़ी बात हैं

         कोई नहीं सुन रहा है

 चूहे की पूँछ की तरह एक छोटा सा टुकड़ा रख दें

            खुद को हीरो समझता है।


 तौलेंगे तो दस किलो होगा

                बलुआ खुद सोचता है

 बाइक एक हाथ में जा गिरी

                जैसे हवा चलती है


 उसे कुछ नहीं करना है

                हमेशा व्यस्त

 बाइक बिस्तर पर पड़ी है

                वह इस गली में घूमता है।


 पैंट कमर के नीचे पहनी जाती है

            सुंदर दिखाई देता है

 पेंट शीट फैली हुई है

               चलो घुड़सवारी करते हैं


 सभी क्लासरूम चले गए हैं

               वह अपने को ज्ञानी समझता है

 मैंने गुरुजन की बात नहीं मानी

                असभ्य होना


 लड़की के पीछे कदम

                दिन खत्म हो गया है

 जितना समझोगे, समझोगे नहीं

                  उसे कौन समझाएगा?


 पिता पैसा उड़ाता है

               पाठ को झाड़ी के पीछे फेंक दें

 समय पूरा होने पर वह डूब गया

              मैं किस्मत में नहीं हूँ


 सभी बच्चे ऐसे ही होते हैं

      यह सच नहीं है

 जिसने भविष्य के बारे में सोचा

              सोना बच्चा है।

 *कविता सुगंध*

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